इंदौर। इंदौर में एक तीन साल की बच्ची को संथारा दिलाने का मामला सामने आया है, जिसने पूरे जैन समाज और देशभर में चर्चा पैदा कर दी है। इस बच्ची को एक वर्ष पूर्व ब्रेन ट्यूमर की गंभीर बीमारी से पीड़ित पाया गया था, जिसका इलाज मुंबई में चल रहा था। बच्ची के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन ने बताया कि जैन मुनि श्री के सुझाव पर उसे संथारा दिलाया गया। धार्मिक प्रक्रिया के चंद मिनटों बाद ही बच्ची का निधन हो गया।
जैन समाज द्वारा इस निर्णय के लिए माता-पिता का सम्मान किया गया है और दावा किया गया है कि इतनी कम उम्र में संथारा दिलाने का यह पहला मामला है, जिसे ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी दर्ज किया गया है।
बच्ची के माता-पिता ने बताया कि वियाना उनकी इकलौती संतान थी और मात्र 3 वर्ष, 4 माह और 1 दिन की आयु में इस संसार को विदा कह गई। पिछले साल दिसंबर में उसके ब्रेन ट्यूमर का पता चला था। पहले इंदौर और फिर मुंबई में इलाज कराया गया, लेकिन कोई विशेष सुधार नहीं दिख रहा था।
डेढ़ माह पूर्व वे बच्ची को आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रह-धारी राजेश मुनि महाराज के दर्शन कराने ले गए। वहां मुनिश्री ने बच्ची की स्थिति को गंभीर बताते हुए संथारा का सुझाव दिया। क्योंकि परिवार मुनिश्री के अनुयायी हैं और मुनिश्री पूर्व में 107 संथारों का संचालन कर चुके थे, इसलिए पूरे परिवार की सहमति से ही संथारा की प्रक्रिया को आरंभ किया गया था। आधे घंटे तक चली इस धार्मिक प्रक्रिया के केवल 10 मिनट बाद ही वियाना ने प्राण त्याग दिए।
वियाना के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन दोनों ही आईटी प्रोफेशनल हैं। उनका कहना हैं इस निर्णय की जानकारी उन्होंने केवल परिवार के कुछ करीबी सदस्यों जैसे दादा-दादी, नाना-नानी और कुछ रिश्तेदारों से ही साझा की थी। संथारा की यह धार्मिक विधि आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रह-धारी राजेश मुनि महाराज और सेवाभावी राजेन्द्र मुनी महाराज साहब के सान्निध्य में ही पूरी की गई थी।
इस अल्पायु में संथारा लेने की वजह से वियाना का नाम ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में भी दर्ज किया गया है। बीते बुधवार को इंदौर के कीमती गार्डन में आयोजित एक सादे एवं गरिमामयी समारोह में इसके लिए माता-पिता को सम्मानित भी किया गया।
वियाना के माता-पिता का कहना है कि उनकी बेटी जैन धर्म के सर्वोच्च व्रत “संथारा” को धारण करने वाली विश्व की सबसे कम उम्र की बालिका बन चुकी है। वे बताते हैं कि वियाना बहुत ही चंचल और प्रसन्नचित बच्ची थी।
उसे प्रारंभ से ही धार्मिक संस्कार दिए जा रहे थे जैसे गोशाला जाना, पक्षियों को दाना डालना, गुरुदेव के दर्शन करना और पचखाण करना। यही धार्मिक वातावरण और परिवार की आस्था ने इस कठिन निर्णय को संभव बनाया। वियाना की यह आध्यात्मिक यात्रा आज पूरे समाज के लिए एक गहन विचार और प्रेरणा का विषय बन गई है।