भारत ने तल्खी के बीच मालदीव की बड़ी मदद का ऐलान किया है. मालदीव के 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर (5 करोड़ रुपये) के सरकारी बॉण्ड की मियाद एक साल के लिए बढ़ा दी है. भारतीय उच्चायोग ने एक बयान जारी करते हुए इसकी पुष्टि की. बयान में कहा गया है कि भारत सरकार से बजटीय समर्थन हासिल करने के मालदीव सरकार (Maldives Government) के विशेष अनुरोध पर अवधि बढ़ाने का फैसला किया गया. हाल ही में मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर भारत दौरे पर आए थे. इस दौरान उन्होंने खुद भारत से बजट अवधि बढ़ाने का अनुरोध किया था.
भारत ने यह फैसला ऐसे वक्त में किया है, जब मालदीव से उसके रिश्ते ठीक नहीं हैं. 6 महीने पहले चीन समर्थक मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत से उसके रिश्ते तल्ख हो गए थे. भारत ने मालदीव के दबाव के बाद इसी महीने की शुरुआत में वहां तैनात अपने 51 सैनिकों को वापस बुला लिया था. राष्ट्रपति मुइज्जू ने भारतीय सैनिकों की वापसी के लिए 10 मई की डेडलाइन रखी थी.
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण मालदीव?
मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने और चीन की तरफ झुकाव होने के बावजूद आखिर भारत ने क्यों मालदीव की मदद का फैसला लिया? जवाब साफ है- मालदीव, भारत के लिए सामरिक और रणनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है. केंद्र-शासित प्रदेश लक्षद्वीप से इसकी दूरी महज 700 किमी है और यह हिंद महासागर में सामरिक रूप से काफी महत्वूर्ण जगह पर स्थित है. हिंद महासागर से जो मालवाहक जहाज गुजरते हैं, वो मालदीव से होकर जाते हैं. एक तरीक से यह सेंटर प्वाइंट है. इसीलिये भारत हर हाल में हिंद महासागर में अपना दबदबा चाहता है.
चीन को काउंटर करने की रणनीति
भारत का पड़ोसी चीन भी हिंद महासागर में अपने पैर जमाने की सालों से कोशिश करता रहा है और मालदीव को अपने पाले में लाने का प्रयास करता रहा है. इसी क्रम में उसने मालदीव को भारी-भरकम मदद भी दी. हालांकि पूर्ववर्ती सरकार में उसकी दाल नहीं गल पाई, लेकिन अब मुइज्जू सरकार में वह अपने मंसूबों को धरातल पर लाने की कोशिशें कर रहा है. मालदीव के विदेशी कर्ज में चीन का करीब 70 फ़ीसदी हिस्सा हो गया है.